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कबीर दास की जीवन परिचय(Biography)?

कबीर दास एक महान समाज सुधारक, कवि और संत थे। उनका जन्म 14वीं शताब्दी के अंत (1398 ई.) में काशी में हुआ था। उस समय मध्यकालीन भारत पर सैय्यद साम्राज्य का शासन था।

कबीर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर किया, जिसके कारण वे समाज सुधारक कहलाने लगे। उन्होंने धर्म और जातिवाद से ऊपर उठकर नीति की बातें लिखीं, जिससे हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोगों ने उनकी आलोचना की। लेकिन, जब कबीर की मृत्यु हुई, तो हिंदू और मुसलमान उन्हें अपने-अपने धर्म का संत मानते थे। कबीर दास भक्तिकाल के कवि थे जो वैराग्य धारण करते हुए निराकार ब्रह्म की पूजा का उपदेश देते हैं। कबीरदास का समय कवि रहीम के समय से पहले का है।

कबीर दास का परिचय

  • नाम कबीर दास (Kabir Das)
  • जन्म 1398 ईश्वी, वाराणसी, उत्तर-प्रदेश
  • पालनहारी माता नीमा (किवदंती के अनुसार)
  • पालनहारी पिता नीरू (किवदंती के अनुसार)
  • विवाह स्थिति अविवाहित (विवादास्पद)
  • रचनाएँ साखी, सबद, रमैनी
  • प्रसिद्धि का कारण समाज-सुधारक, कवि, संत
  • मृत्यु 1518 ईस्वी, मगहर, उत्तर-प्रदेश
  • उम्र 120 वर्ष (विवादास्पद)

कबीर दास का जन्म 1398 ईस्वी में भारत के प्रसिद्ध शहर काशी में हुआ था। लेकिन, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कबीर का जन्म 1440 ई. एक पौराणिक कथा के अनुसार कबीर का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। विधवा महिला ने सार्वजनिक शर्म के डर से इस नवजात बच्चे को छोड़ने का फैसला किया। उसने अपने बच्चे को लहरतारा तालाब के किनारे एक टोकरी के अंदर छोड़ दिया।

एक ही तालाब के पास नीरू और नीमा नाम का एक बुनकर जोड़ा रहता था। वे निःसंतान थे। बच्चे की चीख सुनकर नीरू और नीमा तालाब की ओर आ गए। उसने एक छोटे बच्चे को टोकरी में रोते हुए देखा।

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इस बालक को भगवान का दिया हुआ कुलदीपक मानकर उन्होंने इसे अपना पुत्र मानकर उसका पालन-पोषण किया।

ऐसा माना जाता है कि नीरू और नीमा मुसलमान थे। यानी कबीर का शुरुआती जीवन एक मुस्लिम बुनकर परिवार में बीता।

कबीर दास जी अनपढ़ थे, उन्होंने जो कुछ भी सीखा, अपने अनुभव से सीखा। सद्गुरु रामानन्द की कृपा से उन्हें आत्मज्ञान और ईश्वर भक्ति का वास्तविक अर्थ समझ में आ गया।

कबीर दास Kabir Das वKabir Das उनके गुरु रामानंद

कबीर का पालन-पोषण उत्तर प्रदेश के काशी में हुआ था। वह एक मुस्लिम बुनकर जोड़े के साथ बड़ा हो रहा था। काशी में ही उन्हें एक गुरु रामानंद के बारे में पता चला।

रामानंद उस समय के एक महान हिंदू संत थे। काशी में रहकर गुरु रामानंद अपने शिष्यों और लोगों को भगवान विष्णु के प्रति लगाव का उपदेश देते थे। उनकी शैक्षिक शिक्षाओं के अनुसार, ईश्वर हर इंसान में, हर चीज में है।

कबीर गुरु रामानंद के शिष्य बन गए और उनकी शिक्षाओं को सुना। जिसके बाद यह धीरे-धीरे हिंदू धर्म के वैष्णववाद की ओर बढ़ता गया। कबीर दास स्वयं को रामानंद को अपना गुरु मानते थे।

वह वैष्णव के साथ-साथ सूफी धारा को भी जानता था। इतिहासकारों के अनुसार कबीर गुरु रामानंद से ज्ञान प्राप्त कर संत बने और श्री राम को अपना भगवान मानते थे।

कबीर दास जी की विशेषताएं(Qualities)

1. समावेशी

कबीर दास बचपन से ही एक अकेले इंसान थे। उन्होंने अकेले रहना पसंद किया।

उनके एकांतप्रिय स्वभाव के कारण उनकी बुद्धि का बहुत विकास हुआ। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कबीर दास जी आजीवन अविवाहित रहे।

2. चिंतनशील

कबीर दास भी एक चिंतनशील व्यक्ति थे। उनका अधिकांश समय कविता की रचना और उसके बारे में सोचने में व्यतीत होता था। समाज में व्याप्त कुरीतियों पर गहन चिंतन कर कड़वे काव्य वर्गों की रचना करते थे ताकि समाज से उन बुराइयों को समाप्त कर सकें।

कबीर दास की अधिकांश रचनाएँ बहुत मार्मिक और स्पष्टवादी हैं। भाषा की कठिनाइयों को अपने चिंतन से छोड़कर उन्होंने उस भाषा का प्रयोग किया जो साधारण और लोक मन में रची गई थी।

3. साधुसेविक

कबीर दास जी ने गुरु को सबसे महान बताया। वे गुरु को अपना रिश्तेदार मानते थे और उनसे जुड़े रहते थे।

कबीर ने निराकार ब्रह्म को स्वीकार कर सांसारिक जीवन से अर्थ प्राप्त करने में विश्वास व्यक्त किया। निराकार ब्रह्म की पूजा करके वह एक ऋषि बन गया। मूर्ति-पूजा और बाहरी दिखावटीपन को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि हम सब एक ईश्वर की संतान हैं।

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धर्म पर विचार

कबीर दास जी का मानना था कि सभी मनुष्य चाहे वे हिंदू हों, मुस्लिम हों या किसी अन्य धर्म के हों, वे सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं।

उन्होंने कठोर शब्दों से बाहरी आडंबर और पाखंड को शाप दिया। ईश्वर प्राप्ति के लिए विभिन्न धर्मों में अपनाए गए तरीकों को नकारना। वे वैष्णववाद और सूफीवाद में विश्वास करते थे। उनके गुरुजी के अनुसार ईश्वर हर व्यक्ति में, हर चीज में है और उनमें कोई अंतर नहीं है।

कबीर आध्यात्मिक उपासना अर्थात् मन की उपासना में विश्वास करते थे। उन्होंने ईश्वर की दिखावटी पूजा, नवाज़, उपवास और अन्य सभी दिखावे पर व्यंग्य किया।

उनके अनुसार निराकार ब्रह्म का स्मरण करने से व्यक्ति का अहंकार मिट जाता है। इसलिए वह हमेशा अहंकार छोड़ने की बात करते थे।

कबीर दास की रचनाएँ

कबीर दास जी ने समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, छुआछूत, जातिगत भेदभाव, धार्मिक भेदभाव को कुचलने के लिए अनेक रचनाएँ लिखीं।

कबीर दास जी की कृतियों के मुख्य संकलन को बीजक कहा जाता है। चालान में तीन भाग होते हैं –

सखी

सबाडी

रामेनी

कबीर दास जी ने समाज सुधार के लिए जो भी कार्य किए, उन कार्यों का संकलन उनके शिष्य धर्मदास ने किया। कबीर ने ‘आत्मावत सर्वभूतु’ के मूल्यों की स्थापना की।

उन्होंने अपनी रचनाओं में स्पष्ट भाषा का प्रयोग करते हुए संसार की नश्वरता, अहंकार, आडम्बर, नैतिक मूल्यों, अच्छी संगति, सदाचार आदि पर खुलकर लिखा।

हालांकि कबीरदास जी अनपढ़ थे। वे लिख नहीं सकते थे, लेकिन अपने शिष्य धर्मदास की मदद से इसे लिखवाते थे।

संत काव्य परंपरा में उनके द्वारा रचित रचनाएँ हिंदी साहित्य के लिए एक अमूल्य निधि हैं।

कबीर दास की मृत्यु

  • इतिहासकारों के अनुसार कबीर दास जी की मृत्यु 1520 ईस्वी में 120 वर्ष की आयु में वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के मगहर शहर में हुई थी।
  • एक पौराणिक कथा के अनुसार कबीर दास जी की मृत्यु के समय हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग उनकी मृत्यु शय्या लेने आए थे। हिंदुओं के अनुसार कबीर दास जी हिंदू धर्म के थे, लेकिन मुसलमानों के अनुसार वे मुसलमान थे। जिससे यह विवाद और बढ़ गया।
  • अंत में यह निर्णय लिया गया कि कबीर दास जी के आधे शरीर का अंतिम संस्कार हिंदुओं द्वारा किया जाएगा और आधे शरीर का अंतिम संस्कार मुसलमानों द्वारा किया जाएगा।
  • यह निर्णय लेने के बाद जब कबीर दास जी के शव से चादर उतारी गई तो उनके मृत शरीर के स्थान पर कई फूल मिले। ऐसा अलौकिक दृश्य देखकर सभी को विश्वास हो गया कि कबीर दास जी स्वर्ग में चले गए हैं।
  • अंत में लोगों ने उन फूलों को आधा-आधा विसर्जित कर कबीर दास जी का अंतिम संस्कार किया।
  • जिस जिले में कबीर दास जी की मृत्यु हुई उसका नाम संत कबीर नगर रखा गया।
  • लेकिन कुछ इतिहासकारों के अनुसार 1440 में कबीर दास जी की मृत्यु हो गई।

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